मैं समन्दर भी हूँ, मोती भी हूँ, ग़ोता-ज़न भी
कोई भी नाम मिरा लेके बुलाले मुझको
तूने देखा नहीं आईने से आगे कुछ भी
ख़ुदपरस्ती में कहीं तू न गँवा ले मुझको
कल की बात और है, मैं अब सा रहूँ या न रहूँ
जितना भी चाहे तिरा, आज सताले मुझको
खु़द को मैं बाँट न डालूं कहीं दामन-दामन
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको
बादह फिर बादह है मैं ज़हर भी पी जाऊं क़तील
शर्त यह है, कोई बाहों में संभाले मुझको
Tuesday, December 7, 2010
कोई भी नाम मिरा लेके बुलाले मुझको
Posted by
Nishant Kumar
at
11:27 PM
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