यूँ चुप रहना ठीक नहीं कोई मीठी बात करो
मोर चकोर पपीहा कोयल सब को मात करो
सावन तो मन बगिया से बिन बरसे बीत गया
रास में दुबे नगमे की अब तुम बरसात करो
हिज्र की एक लम्बी मंजिल को जानेवाला हूँ
अपनी यादों के कुछ साये मेरे साथ करो
मैं किरणों की कलियाँ चुनकर सेज बना लूँगा
तुम मुखरे का चाँद जलाओ रौशन रात करो
प्यार बुरी शय नहीं है लेकिन फिर भी यार "क़तील"
गली-गली तकसीम ना तुम अपने जज़्बात करो
Friday, December 10, 2010
यूँ चुप रहना ठीक नहीं कोई मीठी बात करो
Posted by
Nishant Kumar
at
12:24 AM
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