Wednesday, December 8, 2010

अपने हाथों की लकीरों में बसाले मुझको

अपने हाथों की लकीरों में बसाले मुझको
मैं हूँ तेरा, तू नसीब अपना बनाले मुझको

मैं जो कांटा हूँ तो चल मुझसे बचाकर दामन
मैं हूँ गर फूल तो जूडे में सजाले मुझको

मैं खुले दर के किसी घर का सामान हूँ प्यारा
तू दबे पाँव कभी आके चुराले मुझको

तर्क-ए-उल्फत की कसम भी कोई होती है कसम
तू कभी याद तो कर भूलने वाले मुझको

मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के माने
ये तेरी सादा दिली मार न डाले मुझको

कल की बात और है मैं अब सा रहूँ या न रहूँ
जितना जी चाहे तेरा आज सताले मुझको

मैं खुद को बाँट न डालूँ कहीं दामन दामन
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको

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