Tuesday, December 7, 2010

तुझको दरया दिली की कसम साकिया

तुझको दरया दिली की कसम साकिया,
मुस्तकिल दौर पर दौर चलता रहा
रौनक-इ-मैकदा यूं ही बढती रहे
एक गिरता रहे इक संभालता रहे

शिर्फ़ सब्नम ही शान-इ-गुलिस्ता नहीं
शोला-ओ-गुल का भी दौर चलता रहे
अश्क भी चास्म-इ-पुरनम से बहते रहे
और दिल से धूं भी निकलता रहे

तेरे कब्ज़े में है ये मिजामी जहां
तू जो चाहे तो सेहरा बने गुलसितां
हर नज़र पर तेरी फूल खिलते रहे
हर इशारे पे मौसम बदलता रहे

तेरे चेहरे पे ये ज़ुल्फ़ बिखरी हुयी
नींद की गोध में सुबह निखरी हुयी
और इस पर सितम ये अदाएं तेरी
दिल है आखिर कहाँ तक संभालता रहे

इस में खून-इ-तमन्ना की तासीर है
ये वफ़ा-इ-मोहब्बत की तस्वीर है
ऐसी तस्वीर बदले ये मुमकीन नहीं
रंग चाहे ज़माना बदलता रहे

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