Friday, December 10, 2010

अपने होठों पर सजाना चाहता हूँ

अपने होठों पर सजाना चाहता हूँ,
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ।

कोई आंसू तेरे दामन पर गिराकर,
बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ।

थक गया में करते-करते याद तुझको,
अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ।

छा रहा है सारी बस्ती में अँधेरा,
रौशनी दो घर जलाना चाहता हूँ।

आखिरी हिचकी तेरे जानों पा आये,
मौत भी में शायराना चाहता हूँ।

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